
100 इंसान बनाम एक गोरिल्ला।
लिस्मोर: इंटरनेट पर इन दिनों एक अजीब सवाल चर्चा में है, 100 औसत पुरुषों और एक वयस्क नर गोरिल्ला के बीच बगैर नियम-कानून वाली लड़ाई में कौन जीतेगा? यह सवाल रेडिट, टिकटॉक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर छाया हुआ है। कुछ लोग कहते हैं कि इंसानों ने विशाल मैमथ का शिकार किया था, तो वे जीत जाएंगे। वहीं, कुछ का मानना है कि सिल्वरबैक गोरिल्ला 1000 किलो तक वजन उठा सकता है और एक इंसान को तो बहुत आसानी से उछाल सकता है। यह सवाल भले ही मजाकिया लगे, लेकिन यह हमें इंसानों और गोरिल्ला की ताकत, कमजोरी और विकास के बारे में सोचने का मौका देता है। आइए, एक्सपर्ट्स से समझते हैं कि इस लड़ाई में क्या होगा और दोनों प्रजातियों की खासियतें क्या हैं।
करीबी रिश्तेदार हैं इंसान और गोरिल्ला
गोरिल्ला इंसानों के सबसे करीबी रिश्तेदारों में से एक हैं। चिंपैंजी, बोनोबो और ओरांगुटान के साथ गोरिल्ला भी होमिनिडे परिवार का हिस्सा हैं। चिंपैंजी का डीएनए इंसानों से 98.8% मिलता है, जबकि गोरिल्ला का 98.4%। इंसानों और गोरिल्ला का आखिरी साझा पूर्वज करीब 1 करोड़ साल पहले था, जो चिंपैंजी का भी पूर्वज था। इसके बाद दोनों प्रजातियों ने अलग-अलग रास्ते चुने। गोरिल्ला घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहने के लिए विकसित हुए, जबकि इंसान खुले मैदानों और कई तरह के माहौल में रहने लगे। फिर भी, दोनों में कई समानताएं हैं, जैसे अंगूठे का इस्तेमाल, चेहरे के भाव, जटिल सामाजिक व्यवहार और भावनात्मक समझ।
जंगल का बेताज बादशाह है गोरिल्ला
गोरिल्ला की बादशाहत पूरे जंगल पर होती है। एक वयस्क नर सिल्वरबैक गोरिल्ला 160 किलो से ज्यादा वजन का होता है और 1 टन तक वजन उठा सकता है। उनकी ऊपरी शरीर की ताकत हैरान करने वाली है। यह ताकत उन्हें नर गोरिल्ला के बीच होने वाली प्रतिस्पर्धा से मिली, जहां ताकतवर नर ही मादा के साथ जोड़ी बनाता है। गोरिल्ला बहुत मजबूत और सहनशील होते हैं, लेकिन ज्यादातर समय शांत रहते हैं। ये बुद्धिमान जीव अलग-अलग आवाजें, इशारे और छाती पीटकर दूर तक संवाद करते हैं। वे सांकेतिक भाषा सीख सकते हैं, अपने मृतकों के लिए शोक मना सकते हैं और दूसरों के प्रति सहानुभूति दिखा सकते हैं, जो उनकी बुद्धिमत्ता को दर्शाता है।
इंसान ने दिमाग के दम पर किया राज
100 बगैर किसी हथियार के पुरुषों और एक गोरिल्ला की लड़ाई में शायद कई इंसान हार जाएं, लेकिन अगर इंसानों को छूट दे दी जाए तो वे हथियार, रणनीति, ड्रोन, आग और चालाकी का इस्तेमाल करके उसे निश्चित ही मात दे सकते हैं। इंसान शारीरिक रूप से गोरिल्ला जितने ताकतवर नहीं हैं। हमारी असली ताकत है हमारी अनुकूलन क्षमता और बड़े समूहों में एक साथ काम करने की योग्यता। इंसानों का दिमाग गोरिल्ला के दिमाग से औसतन 3 गुना बड़ा है। इस विकास ने हमें अमूर्त सोच, प्रतीकात्मक भाषा और पीढ़ियों तक ज्ञान को बढ़ाने की क्षमता दी। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
गोरिल्ला के सामाजिक समूह में आमतौर पर कुछ परिवार या ज्यादा से ज्यादा 30 सदस्य होते हैं, लेकिन इंसान लाखों लोगों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं। इंसानों ने ताकत की जगह सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी जटिलता को चुना, जिसने हमें धरती की सबसे बहुमुखी और खतरनाक प्रजाति बना दिया।
तो दोनों की लड़ाई में कौन जीतेगा?
अगर इंसानों और गोरिल्ले की आमने-सामने की और बगैर किसी हथियार के लड़ाई हो तो गोरिल्ला की जीत की संभावना बहुत ज्यादा है। ताकत और खाली हाथों की लड़ाई में गोरिल्ला का कोई मुकाबला नहीं। लेकिन इंसान चालाकी से लड़ते हैं। वे हथियार, रणनीति और तकनीक के साथ आखिरकार जीत जाएंगे। इंसानों ने हर महाद्वीप, हर तरह के इलाके और जलवायु में बसने की क्षमता हासिल की है। हमने पारिस्थितिक तंत्र बदले, चांद पर कदम रखा और उन्नत तकनीक विकसित की। लेकिन गोरिल्ला भी अपने तरीके से विजेता हैं। वे अपने पर्यावरण के साथ सामंजस्य, शारीरिक सुंदरता और शांत ताकत का प्रतीक हैं।
इस तुलना का असली सबक क्या है?
इस सवाल का जवाब यह नहीं है कि कौन जीतेगा। असली सबक यह है कि इंसान और गोरिल्ला, जो एक-दूसरे के करीबी रिश्तेदार हैं, ने विकास के दो अलग-अलग रास्ते चुने। दोनों अपने-अपने तरीके से प्रकृति की शानदार रचना हैं। गोरिल्ला हमें अपनी ताकत, शांति और पर्यावरण के साथ तालमेल की सीख देता है, जबकि इंसान की कहानी अनुकूलन, सहयोग और इनोवेशन की है। यह बहस हमें याद दिलाती है कि प्रकृति ने हर प्रजाति को अनोखा बनाया है, और दोनों ही अपने तरीके से विजेता हैं। (द कन्वर्शेसन)
