
मोदी सरकार के एक्शन के क्या मायने हैं?
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पूरे एक्शन के मोड में है। पाकिस्तान के खिलाफ विभिन्न मोर्चों से प्रहार शुरू हो गया है। शुरुआती फैसलों में जहां पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को रोक दिया गया है वहीं अटारी बॉर्डर से आवाजाही बंद कर दी गई है, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा को कैंसिल कर दिया गया है और उन्हें 48 घंटे के भीतर देश छोड़ना होगा। इस लेख में हम मोदी सरकार द्वारा लिए गए एक्शन की डिटेल्स को समझने की कोशिश करेंगे और फिर इन फैसलों के असर बारे में जानने की कोशिश करेंगे।
जिस वक्त पहलगाम में टूरिस्टों पर आतंकी हमला हुआ उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दौरे पर थे। पहलगाम हमले के बाद पीएम मोदी अपना दौरा बीच में छोड़कर वापस लौट आए। शाम में पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में पांच बड़े फैसले लिए गए। इन फैसलों का उद्देश्य पाकिस्तान पर कूटनीतिक और रणनीतिक दबाव डालना है।
सिंधु जल समझौते पर रोक
भारत ने 1960 के सिंधु जल समझौते को रोक दिया है। इस समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच जल संसाधनों का बंटवारा होता है। यह कदम पाकिस्तान पर आर्थिक और पर्यावरणीय दबाव डालने के लिए उठाया गया।
पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द
सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दिया गया है। उनके वीजा तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए गए है। भारत सरकार का यह कदम सुरक्षा और कूटनीतिक जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
अटारी-वाघा बॉर्डर चेकपोस्ट बंद
भारत-पाकिस्तान के बीच अटारी बॉर्डर को तत्काल प्रभाव से सील कर दिया गया है। इस बॉर्डर के सील होने से दोनों देशों देशों के बीच व्यापार और आवागमन पर रोक लग गई।
पाकिस्तानी दूतावास पर कार्रवाई
नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, नौसेना, और वायुसेना सलाहकारों को अवांछित घोषित कर एक सप्ताह में भारत छोड़ने का आदेश दिया गया। साथ ही, उच्चायोग के कर्मचारियों की संख्या 55 से घटाकर 30 करने का निर्णय लिया गया, जो 1 मई 2025 से लागू होगा।
पाकिस्तान में भारतीय दूतावास बंद
भारत ने इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग से सैन्य सलाहकारों और सहायक कर्मचारियों को वापस बुलाने का फैसला किया, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध और सीमित हो गए।
वहीं अब हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि मोदी सरकार के इन फैसलों का क्या असर हो सकता है।
1. कूटनीतिक प्रभाव
- भारत-पाकिस्तान संबंधों में और गिरावट आ सकती है। दूतावास बंद करने और वीजा रद्द करने जैसे फैसले से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध समाप्त हो सकते हैं। यह 1971 के युद्ध के बाद सबसे गंभीर कूटनीतिक टकराव हो सकता है।
- भारत का यह एक्शन अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश को दर्शाता है। अमेरिका, रूस, और यूरोपीय देश भारत के साथ खड़े हो सकते हैं, जबकि चीन और कुछ इस्लामी देश पाकिस्तान का समर्थन कर सकते हैं।
- सिंधु जल समझौते को तोड़ने का मुद्दा वर्लड बैंक और संयुक्त राष्ट्र में उठ सकता है। क्योंकि यह समझौता अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के तहत हुआ था। सार्क जैसे क्षेत्रीय मंच और निष्क्रिय हो सकते हैं।
2. आर्थिक प्रभाव
- सिंधु जल समझौता खत्म होने से पाकिस्तान को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। वहां की कृषि में सिंधु नदी से होने वाली सिंचाई का काफी महत्व है। यहां की 80% से अधिक खेती सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। भारत द्वारा इस समझौते को खत्म करने से पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा, बिजली उत्पादन (हाइड्रोपावर), और अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है। इससे पाकिस्तान में सामाजिक अशांति बढ़ सकती है।
- अटारी-वाघा बॉर्डर बंद होने से पाकिस्तान का भारत के साथ सीमित व्यापार रुक जाएगा। भारत के इस कदम से उसकी पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा।
- वहीं भारत की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान पर निर्भर नहीं है, इसलिए व्यापार बंदी का भारत पर नहीं के बराबर असर होगा। हालांकि, सिंध जल समझौता तोड़ने से भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ सकता है।
3. सामरिक और सुरक्षा प्रभाव
पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई सीमा के इलाकों में घुसपैठ या आतंकी वारदातों को अंजाम देना हो सकता है। लेकिन भारत इनसे मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। CCS की बैठक के बाद ऐसा लग रहा है कि भारत सर्जिकल स्ट्राइक या सीमित सैन्य कार्रवाई पर विचार कर सकता है। इससे नियंत्रण रेखा (LoC) पर तनाव बढ़ सकता है। पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव से दीर्घकाल में आतंकी संगठनों की फंडिंग और आतंक को मिलने वाला समर्थन कमजोर पड़ सकता है।
4. क्षेत्रीय और सामाजिक प्रभाव
- सिंधु समझौते पर रोक लगने से जल संकट और आर्थिक दबाव से पाकिस्तान में सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है। सरकार और सेना के बीच तनाव भी बढ़ सकता है, क्योंकि जनता में असंतोष उभरेगा।
- भारत में इसका राजनीतिक प्रभाव दिख सकता है। भारत में इन फैसलों को जनता और विपक्ष द्वारा “मजबूत नेतृत्व” के रूप में देखा जा सकता है, जिससे मोदी सरकार की लोकप्रियता बढ़ सकती है। हालांकि, विपक्ष इसकी आलोचना कर सकता है यदि यह युद्ध या आर्थिक लागत की ओर ले जाता है।
- इससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ सकती है। दक्षिण एशिया में तनाव बढ़ने से अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है।
5. अंतरराष्ट्रीय और कानूनी प्रभाव
- सिंधु जल समझौते को तोड़ने से भारत को विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, भारत इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” का मामला बताकर बचाव कर सकता है।
- पाकिस्तान का प्रमुख सहयोगी होने के नाते, चीन CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) और सैन्य समर्थन के जरिए हस्तक्षेप कर सकता है। इससे भारत-चीन तनाव भी बढ़ सकता है।
- दोनों देशों के परमाणु हथियारों के कारण, किसी भी सैन्य टकराव में वृद्धि का खतरा बना रहता है, हालांकि दोनों पक्ष इसे टालने की कोशिश करेंगे।
