
नाना पाटेकर।
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का एक बड़ा नाम है विश्वनाथ पाटेकर, जो फिल्मी दुनिया का हिस्सा होकर भी सालों से अलग जिंदगी जीते आ रहे हैं। कैलिग्राफी से शूटिंग तक में माहिर इस एक्टर ने भारतीय सेना में एक फ्रंटलाइन वॉरियर के तौर पर सेवाएं दीं। फिल्मों में अपनी आवाज से हर किरदार में अलग छाप छोड़ी और अब खेती के साथ ही चैरिटी का भी काफी काम करते हैं। ये एक्टर भारत-पाकिस्तान के करगिल युद्ध में वॉर जोन में पोस्टेड रहे हैं। हिंदी और मराठी सिनेमा में काम करने वाले इस एक्टर को सभी नाना पाटेकर के नाम से जानते हैं। जी हां, आज ये नाम किसी भी पहचान का मोहताज नहीं है। भारतीय सिनेमा में सबसे शानदार और प्रभावशाली अभिनेताओं में इन्हें गिना जाता है।
दांव पर लगाया था करियर
बहुत कम लोग जानते हैं कि अभिनेता नाना पाटेकर ने 1990 से 2013 तक भारतीय सेना के हिस्से के रूप में देश की सेवा की। कारगिल युद्ध को आधुनिक भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है। यह युद्ध भारत और पड़ोसी देश पाकिस्तान के बीच आखिरी प्रमुख लड़ाई थी। इस लड़ाई में जब जवान अपनी जान की बाजी लगाकर मातृभूमि की रक्षा के लिए अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे थे तो देश के बाकी लोग भी उनका साथ देने के लिए आगे आए। कुछ लोग आर्थिक मदद के लिए आगे आए तो कुछ ने उनका मनोबल बढ़ाने के लिए जयकारे लगाए। इसी बीच नाना पाटेकर ने अपने अभिनय करियर को ताक पर रख दिया था। उस दौर में तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रहे एक्टर ने करियर के चरम पर फिल्मों से किनारा किया और भारतीय सेना में फ्रंटलाइन वॉरियर के रूप में देश की सेवा करने पहुंच गए।
जॉर्ज फर्नांडिस से ली अनुमति
रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस से उन्होंने मुलाकात की और उनके स्वीकृति के बाद वो जंग लड़ने पहुंच गए। फर्नांडिस ने उन्हें मातृभूमि के लिए लड़ने की अनुमति दे दी। नाना पाटेकर ने कारगिल युद्ध के दौरान देश के साथ खड़े होने के लिए अपने बॉलीवुड करियर से ब्रेक लिए और अलग-अलग क्षेत्रों में पोस्टेड रहे। नाना पाटेकर ने 1990 के दशक की शुरुआत में सेना की मराठा लाइट इन्फैंट्री के साथ तीन साल तक रहकर प्रशिक्षण लिया और अपनी फिल्म प्रहार लिखी। हालांकि जब कारगिल युद्ध छिड़ा तो उन्होंने डिवीजन के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया और अनुरोध किया कि उन्हें मोर्चे पर जवानों के साथ शामिल होने की अनुमति दी जाए, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया। इससे अभिनेता को आगे प्रयास करने से नहीं रोका जा सका। उन्हें बताया गया कि केवल रक्षा मंत्री ही उनकी तैनाती को मंजूरी दे सकते हैं, इसलिए उन्होंने उस समय के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस से संपर्क किया था। एक्टर ने रक्षा मंत्री को बताया कि वो नेशनल लेवल शूटर रहे हैं और तीन साल आर्मी प्रशिक्षण भी ले चुके हैं, ऐसें उन्हें लड़ाई पर जाने की अनुमती दी जाए।
घटा था 20 किलो वजन
नाना पाटेकर जल्द ही भारतीय सेना के मानद कैप्टन के रूप में अग्रिम मोर्चे पर शामिल किए गए। अगस्त 1999 में वो एलओसी पर भी पोस्टेड रहे। एक्टर ने खुद खुलासा किया था कि उन्होंने मुगलपुरा, द्रास, लेह, कुपवाड़ा, बारामूला और सोपोर में पोस्टेड रहे। एक्टर ने अस्पताल बेस में भी काम किया था। इस जंग ने उन्हें काफी प्रभावित किया था। इस दौरान नाना पाटेकर का 20 किलो से अधिक वजन कम हो गया था। उन्होंने बताया था, ‘जब मैं श्रीनगर पहुंचा तो मेरा वजन 76 किलोग्राम था। जब मैं वापस आया तो मेरा वजन 56 किलोग्राम हो गया।’ बता दें, एक्टर को आर्मी में हॉनरी कैप्टन की पोस्ट दी गई, जिससे वो 62 साल की उम्र में रिटायर हुए।
