May 3, 2025 1:44 am

May 3, 2025 1:44 am

Search
Close this search box.

भारत में 1931 में हुई थी आखिरी जाति जनगणना, जाने क्या थे आंकड़े, अब यह क्यों जरूरी?

Cast census
Image Source : INDIA TV
जाति जनगणना

केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना में जातिगत जनगणना को भी शामिल करने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 30 अप्रैल (बुधवार) को कहा कि आगामी जनगणना में जातिगत गणना को ‘‘पारदर्शी’’ तरीके से शामिल किया जाएगा। राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा लिए गए निर्णयों की घोषणा करते हुए अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वेक्षण के नाम पर जाति गणना की है। 

वैष्णव ने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने राजनीतिक कारणों से जाति आधारित सर्वेक्षण कराया गया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का संकल्प है कि आगामी अखिल भारतीय जनगणना प्रक्रिया में जातिगत गणना को पारदर्शी तरीके से शामिल किया जाएगा। भारत में प्रत्येक 10 साल में होने वाली जनगणना अप्रैल 2020 में शुरू होनी थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसमें देरी हुई। देश में 96 साल बाद जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया गया है। इससे पहले 1931 में ऐसा हुआ था। ऐसे में 1931 की जनगणना के आंकड़े और इसकी अहमियत बढ़ गई है।

देश में दो बार हुई जातिगत जनगणना

देश में अब तक दो बार जातिगत जनगणना हुई है। पहली बार 1901 में ऐसा हुआ था। इसके बाद 1931 में जाति जनगणना हुई। इससे देश की सामाजिक संरचना के बारे में अहम जानकारी मिलती है। 1931 की जनगणना में ही यह सामने आया कि उस समय देश की आबादी 27 करोड़ थी और इसका 52 फीसदी हिस्सा अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल जातियां थीं। इसी आधार पर 1980 में मंडल आयोग ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की थी, जिसे 1990 में लागू किया गया था।

Cast census

Image Source : INDIA TV

1931 जाति जनगणना के आंकड़े

जातिगत जनगणना कराना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं रहा है। 1881 में सिर्फ उन्हीं जातियों को शामिल किया गया था, जिनकी आबादी एक लाख से ज्यादा थी। हालांकि, 1901 में वर्ण आधारित जाति जनगणना होने लगी। इसके बाद अलग-अलग जाति के लोगों ने अपनी स्थिति में सुधार के लिए कई आंदोलन किए।

जाति जनगणना क्या है?

जाति जनगणना में देश में मौजूद हर व्यक्ति के नाम, लिंग, शिक्षा, आर्थिक स्थिति के साथ जाति का डेटा भी जुटाया जाता है। भारत में जाति लोगों की शिक्षा नौकरी और सामाजिक पहुंच में अहम योगदान देती है। ऐसे हर जाति के लोगों की आबादी के बारे में स्पष्ट रूप से पता चलने पर सरकारें बेहतर तरीके से रणनीति बना सकती हैं और सामाजिक समरता को बढ़ाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं। आरक्षण और जन कल्याणकारी नीतियां बनाने में जाति जनगणना के आंकड़े अहम रोल अदा कर सकते हैं।

नेहरू सरकार ने क्यों बंद की जाति जनगणना

देश की आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुआई वाली सरकार ने जातिगत जनगणना बंद करने का फैसला लिया था। उनका मानना था कि इससे राष्ट्रीय एकता कमजोर होती है और देश की सामाजिक विविधता के चलते समाज में विभाजन आ सकता है। इसके बाद सरकारों ने जाति-आधारित पहचान को कम करने और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने का लक्ष्य रखा। इसी वजह से लगभग एक सदी तक जाति जनगणना नहीं कराई गई।

Cast Census Stats

Image Source : INDIA TV

1931 जाति जनगणना के आंकड़े

अब जाति जनगणना क्यों जरूरी?

पिछले कुछ दशकों में सामाजिक असमानता बढ़ने के कारण अलग-अलग नेताओं और राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की मांग की है। कई राज्यों में सरकारें जाति जनगणना करा भी चुकी हैं। ऐसे में केंद्र ने पूरे देश में होने वाली जनगणना में जाति से जुड़े सवालों को भी शामिल करने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी इसका जिक्र किया। आइए जानते हैं कि अब जाति जनगणना क्यों जरूरी है।

सामाजिक न्याय: जातियों को लेकर सटीक डेटा होने पर शिक्षा, नौकरियों और जनकल्याण कार्यक्रमों में आरक्षण नीतियों को ज्यादा प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है। इससे हाशिये पर पड़े लोगों की पहचान होगी और उनको मुख्य धारा में शामिल करने के लिए नीतियां बनाई जा सकेंगी।

नीति सुधार: पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा के अनुसार, जाति जनगणना शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण और सामाजिक सुरक्षा में असमानताओं को उजागर कर सकती है। इससे अधिक समावेशी और उत्तरदायी नीतियों के निर्माण में मदद मिल सकती है।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व: जातिगत आंकड़ों के आधार पर राजनीतिक दल अलग-अलग समुदायों के बीच प्रतिनिधित्व का कम कर सकते हैं और इसी आधार पर अपनी चुनावी रणनीति बना सकते हैं। इससे हर जाति और समुदाय के लोगों की बात सरकार तक बेहतर तरीके से पहुंच सकती है।

राज्य स्तरीय मांग: बिहार और तेलंगाना जैसे राज्य पहले ही अपने जातिगत सर्वेक्षण कर चुके हैं, जिससे ऐसे आंकड़ों का व्यावहारिक मूल्य उजागर होता है और देशव्यापी सर्वेक्षण की मांग उठ खड़ी हुई है।

सामाजिक-आर्थिक असमानताएं: भारत में जाति हमेशा से ही अवसरों और संसाधनों तक पहुंच में अहम रोल अदा करती रही है। मौजूदा समय में जाति आधारित आंकड़ों में कमी के चलते सरकारें प्रभावी नीतियां बनाने में चुनौती का सामना करती हैं।

जाति जनगणना की चुनौतियां

जाति जनगणना के आंकड़े सरकारों के लिए जरूरी तो हैं, लेकिन जनगणना कराना बेहद मुश्किल रहा है। इसके साथ ही जनगणना के आंकड़े और जाति आधारित नीतियां सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा दे सकती हैं। देश में हजारों जातियां और उपजातियां हैं। ऐसे में सभी जातियों का उचित वर्गीकरण करना बेहद मुश्किल है। एक ही जाति के लोग अलग-अलग राज्यों में अलग स्थिति में हैं और सभी के लिए समान नीति बनाना मुश्किल है। हालांकि, पारदर्शी दृष्टिकोण के साथ सावधानीपूर्वक योजना बनाने से इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है। इससे जाति आधारित भेदभाव और सामाजिक अंतर को कम करने वाली नीतियां बनाई जा सकती हैं।

Latest India News

Source link

Amogh News
Author: Amogh News

Leave a Comment

Read More

1
Default choosing

Did you like our plugin?

Read More